दोस्तों प्रोडक्ट बेचने वाली कोई भी कंपनी यह चाहती है कि उसका प्रोडक्ट बहुत जोरों शोरों से बीके और इसके लिए वह की पैकिंग और टेस्ट पर ध्यान देती है। उसे अपने से बढ़ते मुनाफे से मतलब होता है ना की उस प्रोडक्ट को किस प्रोसीजर से बनाया जाता है उससे। यह तो एक कंपनी का नजरिया है एक उपभोक्ता जो इस प्रोडक्ट को उपयोग करता है। वही इसकी आकर्षक पैकिंग और टेस्ट को देख कर वह प्रोडक्ट खरीद लेता है बिना यह जाने के प्रोडक्ट कैसे बनाया गया है। और इसमें कौन-कौन से इनग्रेडिएंट प्रयोग में लाए गए हैं। आज हम अपने आर्टिकल में कुछ ऐसे ही पॉपुलर प्रोडक्ट के बारे में बात करेंगे जो आप नहीं जानते होंगे कि यह कैसे बनाए गए हैं। और इसमें किन किन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है?
कैप्सूल
कैप्सूल लोग बीमार होने पर दवाई के रूप में लेते हैं। कैप्सूल देखने में ऐसा लगता है यह प्लास्टिक का बना है। असल में ये कवर प्लास्टिक का नहीं बल्कि जिलेटिन का बना होता है और उस कवर के अंदर संबंधित बीमारी का दवाई का पाउडर होता है। दोस्तों आपको जानकार यह आश्चर्य होगा कि जिलेटिन मांसाहार की श्रेणी में आता है। जिसे प्राप्त करने का एकमात्र स्रोत जानवर का मांस ही है। इसे बनाने के लिए मुख्य रूप से सुवर या सांड का मास इस्तेमाल किया जाता है। जो इन जानवरों के खून और जोड़ों में पाए जाने वाले टिशु को उबालकर प्राप्त होता है। यह कार्य फैक्ट्रियों में होता है। जिलेटिन का अपना कोई स्वाद और खुशबू नहीं होता। यह बिल्कुल प्लास्टिक जैसा ही होता है। एक अन्य प्रकार का जिलेटिन होता है जो पेड़ पौधों से तैयार किया जाता है। जिसकी कोस्ट काफी हाई होती है और जो दवाई का रेट 3 से 4 गुना तक बढ़ा देता है। इसलिए कंपनियां ज्यादातर जानवरों से प्राप्त जिलेटिन का ही प्रयोग करती हैं।
पानी पूरी
पानी पूरी पानी पूरी चाट वेंडर को देखकर अच्छे-अच्छे लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। क्योंकि उसका टेस्ट ही जो इतना मजेदार होता है लेकिन कुछ लोग इसे अनहाइजीनिक और स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं मानते। क्यूंकि इसको खिलाने वाले व्यक्ति का हाथ पूरे समय पानी में डूबा ही रहता है, जो ठीक नहीं है। आपको जानकर यह भी आश्चर्य होगा कि इसके पानी से ज्यादा हानिकारक इसकी कुरकुरी पूरी होती है। गोलगप्पे बनाने वाला वेंडर ज्यादातर पूड़ी अपने से ना बनाकर फैक्ट्रियों से लेता है और ऐसा करके वह अपना समय और पैसा दोनों ही बचाता है। यह व्यवसाय बहुत बड़ा नहीं है पर जहां यह बनाए जाते हैं वहां पर साफ-सफाई का नामोनिशान दूर दूर तक नहीं होता। और जिस तेल में यह तली जाती हैं वह भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यह लोग उस तेल का इस्तेमाल पूरी तरह से काला हो जाने तक करते हैं। और जिस मैदा से यह पूरी बनती हैं उस मैदा को जमीन पर पैरों से गूंदा जाता है, जिससे उसमें जमीन की गंदगी व बैक्टीरिया मिल जाते हैं। और जब लोग पानी पूरी खाते हैं तो उसके स्वाद की वजह से उसकी गंदगी का पता ही नहीं लगता। इसलिए आगे से आप जब भी पानी पूरी खाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि दुकान आप की विश्वसनीय हो और वहां साफ-सफाई का अच्छे से ध्यान रखा जाता हो।
चिप्स
दोस्तों आपने फूले फूले ब्रांडेड कंपनियों के टिप्स तो बड़े चाव से खाए होंगे जिसमें हवा ज्यादा और चिप्स कम होते हैं। इनको लोग बहुत चाव से खाते हैं क्योंकि इनका टेस्ट ही जो इतना अच्छा होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इसमें इस्तेमाल होने वाला आलू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। क्योंकि इसमें Fat और कार्बोहाइड्रेट होता है और जब यह तला जाता है तब और भी हानिकारक हो जाता है। दूसरा इन चिप्स में मिलाए जाने वाला केमिकल जो चिप्स व को बहुत दिनों तक खराब नहीं होने देता वह है सोडियम बाईसल्फाइट। जो एक एंटीफंगल केमिकल है। जो फेस वास हैंड वॉश शैंपू और एंटीफंगल में यूज होता है। जिसका मुख्य काम बैक्टीरिया खत्म करना होता है। हां अगर कम मात्रा में इसका सेवन किया जाए तो इसका शरीर पर ज्यादा इफेक्ट नहीं होता।
च्युइंग गम
च्युइंग गम हर व्यक्ति ने अपनी लाइफ में खाया ही होगा। बहुत से लोग इसे अपने मुंह की बदबू को रिमूव करने के लिए प्रयोग में लाते हैं। पुराने समय में च्युइंग गम चीकू के पेड़ से निकलने वाले रबड़ से बनती थी। लेकिन आजकल कंपनियां इसे बनाने के लिए पोली आइसो ब्यूटी लीन ( Poly Iso Butyl ) का इस्तेमाल कर रही हैं। जिसे आप आम भाषा में रबड़ या प्लास्टिक भी कह सकते हैं। यह वही रबड़ है जिससे गाड़ी के टायर बगैरा बनाए जाते हैं। इसमें Mint, Menthol , फ्लेवर मिला दिए जाते हैं जिससे इसका स्वाद अच्छा लगे। इसको चबाने तक तो इतना प्रॉब्लम नहीं है, पर जब यह निगल ली जाती है और हमारे पेट में पहुंच जाती है तो यह पच नहीं पाती। मनुष्य का शरीर रबड़ पचाने के लिए सक्षम नहीं है और यह बहुत टाइम तक हमारे शरीर में पड़ी रह सकती है।
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